चौ. चरण सिंह की विशाल विरासत छिन्न-भिन्न

यह बताने की जरूरत नहीं कि रालोद किसान नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत को लेकर चल रहा है। चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। उनके समय में लोकदल का प्रभाव समूचे उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र और उड़ीसा तक था। आज के ज्यादातर समाजवादी नेता किसी न किसी रूप में चौधरी चरण सिंह से जुड़े रहे हैं। हरियाणा का चौधरी देवीलाल परिवार हो या फिर यूपी का मुलायम सिंह यादव परिवार। बिहार के आज के प्रमुख राजनीतिक क्षत्रप भी कभी चौधरी चरण सिंह की छत्रछाया में फले-फूले हैं। चौधरी चरण सिंह का नाम लेकर राजनीति करने वाले क्षेत्रीय दल तो राजनीति में कहां से कहां पहुंच गए, लेकिन उनकी विरासत का असली वारिस रालोद रसातल में पहुंच चुका है। रालोद आज वेस्ट यूपी तक सीमित हो गया है। संसद में रालोद का एक भी सदस्य नहीं है जबकि यूपी और राजस्थान में एक-एक विधायक। समझा जा सकता है कि रालोद की हैसियत क्या हो गई है।
समझा जा सकता है कि चौधरी अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी के मन में चौधरी चरण सिंह की विशाल विरासत को संभाल कर न रख पाने का मलाल तो होगा ही। यूपी में 2022 में विधान सभा के चुनाव होने हैं। चुनाव से डेढ़ साल पहले ही जयंत चौधरी ने अपनी खोई हुई जमीन फिर से पाने के लिए सक्रियता बढ़ा दी है। इसकी शुरुआत उन्होंने जाटलैंड से ही की है। महापंचायतों के जरिए वे अपने खोए हुए जनाधार को हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। नवम्बर में उनकी पहली महापंचायत मुजफ्फरनगर में हुई। इस पंचायत में भारी भीड़ जुटी। भीड़ देखकर किसी भी नेता का उत्साह बढ़ना स्वाभाविक था। जयंत चौधरी ने माहौल देखा तो मनुहार कर बैठे। मथुरा में भी उन्होंने भावनात्मक कार्ड खेला।
बार-बार ठीये बदलने से साख बिगड़ी
रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को उन लोगों के बीच क्षमायाचना जैसी स्थिति में क्यों जाना पड़ रहा है जो कभी उनके ही हुआ करते थे। शायद वे जान गए हैं कि पिछले दो दशक के दौरान उनकी पार्टी रालोद ने जिस तरह वैशाखियों का सहारा लेकर चलना सीखा है, उससे पार्टी की साख बुरी तरह प्रभावित हुई है। रालोद ने 2002 में यूपी का विधान सभा चुनाव और 2009 का लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा। विधान सभा में उन्हें 15 सीटें मिलीं और जब 2004 में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी तो अजित सिंह ने भाजपा को छोड़कर सपा सरकार में भागीदारी कर ली। इसी प्रकार 2009 के लोकसभा चुनाव के रिजल्ट वाले दिन ही चौधरी अजित सिंह कांग्रेस को समर्थन देने के लिए कांग्रेस मुख्यालय पहुंच गए थे। एक समय ऐसा भी आया था जब चौधरी अजित सिंह ने बसपा के साथ गठबंधन की कोशिश की थी, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसे ठुकरा दिया था। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में अजित सिंह के रालोद ने सपा और बसपा से पैक्ट कर लिया। पिछले दो दशक के रालोद के ये कदम ही उसकी साख पर भारी पड़े हैं। इन्हीं कदमों की वजह से रालोद समर्थक जाट मतदाता चौधरी चरण सिंह की विरासत वाले दल से मुंह मोड़ते चले गए। इसका नतीजा सामने है। आज रालोद का एक भी सांसद नहीं है जबकि यूपी और राजस्थान में वह एक-एक विधायक पर सिमट गया है।