बच्चों का ध्यान भटक रहा

- स्कूल नहीं खुलने से घट रही है प्रतियोगिता की भावना
- पीअर प्रेशर के अभाव में लॉस ऑफ कंसर्टेशन बढ़ रहा
- स्कूल खुलने पर बहुत से बच्चे कर लेंगे पढ़ाई से तौबा
स्कूल के बंद होने तथा नियमित क्लास रूम पढ़ाई न होने से बच्चों की रुचि पढ़ाई से घट रही है। सर्वाधिक असर उनके कंसर्टेशन पर पड़ा है। पढ़ते समय उनकी एकाग्रता अब पहले जैसी नहीं रही। पढ़ाई से उन्हें जल्दी ही ऊब हो रही है। इसका खामियाजा स्कूल खुलने पर सामने आएगा। बहुत से पैरेंट्स इस मामले में बाल मनोविज्ञानियों की सलाह ले रहे हैं।
स्कूलों को बंद हुए लगभग 10 माह हो चुके हैं। स्कूलों में होने वाली नियमित क्लास रूम पढ़ाई, टेस्ट तथा एग्जाम बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ाने का काम करते हैं। स्कूल में पड़ने वाली डांट भी कई मर्तबा मोटीवेशन तथा प्रतिस्पर्धा का कारण बन जाती है। नियमित क्लास रूम में जो पढ़ाई होती है, उसका दस प्रतिशत भी ऑनलाइन में पढ़ाया या सिखाया नहीं जा सकता। ऐसे में हाथ में आए मोबाइल ने बच्चों की रुचि मोबाइल गेम में बढ़ा दी है। कुछ बच्चे तो इसके एडिक्ट हो रहे हैं। इसे इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर (आईजीडी) कहा जाता है। बच्चों के मनोविज्ञान पर लंबे समय से काम कर रही डॉ. शशि गुरुनानी ने बताया कि उन्हें भय है कि कमजोर वर्ग के अधिकांश बच्चे तो स्कूल खुलने पर पढ़ाई ही छोड़ देंगे। यही स्थित छोटे स्कूलों की है। ऐसे स्कूल बंद हो चुके हैं।
डॉ. गुरुनानी के अनुसार स्कूल में पढ़ने पर पीअर प्रेशर ( साथ के बच्चों से कंपटीशन की भावना) बच्चों को मोटीवेट करता है कि वे दूसरे से आगे निकल सकें। पीअर प्रेशर बच्चों को सर्वाधिक प्रभावित करता है। यही प्रेशर उन्हें अच्छे अंक लाने, खेल में आगे निकलने तथा अन्य एक्सट्रा करीकुलर एक्टिविटी में आगे निकलने के लिए प्रेरित करता है। ऑनलाइन शिक्षा कभी भी क्लास रूम शिक्षा की जगह नहीं ले सकती। क्लास में जिन बच्चों को पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए शिक्षकों को काफी मेहनत करनी पड़ती है, ऑनलाइन पढ़ाई में सबकुछ बच्चे की मनमर्जी पर स्थानांतरित हो जाता है। क्लास में होने वाले टेस्ट, एग्जाम बच्चे को अपने क्लासमेट से आगे निकलने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसा न होने पर पढ़ाई में कंसर्टेशन नहीं हो पाता। लंबे समय से घर में बैठे बच्चे इसी लॉस ऑफ कंसर्टेशन का शिकार हो रहे हैं। स्कूल खुलने पर वह पहले की तरह पढ़ाई कर पाएंगे, इसमें संशय है। डा. शशि गुरुनानी ने बताया कि बहुत से पेरेंट्स उनके पास बच्चों में कंसर्टेशन की कमी तथा बच्चों का मोबाइल गेम के प्रति एडिक्शन की समस्या लेकर उनके पास आ रहे हैं। इसका प्रमुख कारण मां-बाप का भी मोबाइल तथा सोशल मीडिया पर हर समय लगे रहना है। बच्चा जब अपने बड़ों को हर समय मोबाइल में डूबा हुआ देखता है तो वह भी मोबाइल पर गेम खेलना शुरू कर देता है। कई बार गेमिंग की यह प्रवृत्ति एडिक्शन के लेबल तक पहुंच जाती है। ऐसे बच्चों को दोबारा से लाइन पर लाने के लिए काफी मेहनत बाल मनोविज्ञानियों को करनी पड़ती है।