भारत-चीन की सेनाएं हट रहीं पीछे

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत-चीन सीमा विवाद पर आज संसद में अपना बयान जारी कर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण तट से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटेंगी। कल से सीमा पर सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस समझौते के बाद भारत-चीन चरणबद्ध, समन्वित तरीके से आगे की तैनाती को हटा देंगे। चीन फिंगर-8 पर अपनी सेना रखेगा और भारत फिंगर-3 पर अपनी सेना रखेगा। राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में कड़े शब्दों में कहा कि चीन ने 1962 से भारत की भूमि कब्जा कर रखा है, जिसे हम स्वीकार नहीं करते। इस समझौते से भारत ने कुछ भी नहीं खोया है। उन्होंने कहा कि चीन के साथ जो समझौता हुआ है, उसके अनुसार हम पुरानी स्थिति कायम करने में सहमत हुए हैं। 48 घंटे के अंदर दोनों देश के कमांडर मिलेंगे। कमांडरों की बैठक में आगे की स्थिति पर वार्ता होगी। समझौते के मुताबिक धीरे-धीरे सेना हटेगी। हम पैंगोंग झील से हटने पर सहमत हुए हैं, वहीं चीन भी अपनी सेना हटाने पर राजी है।
हमने नॉर्थ बैंक पर गश्त स्थगित रखने का भी फैसला किया है। गश्त तभी शुरू होगी, जब दोनों देशों के कमांडर इस पर सहमत होंगे। राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में कहा कि हम नियंत्रण रेखा पर शांतिपूर्ण स्थिति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत ने हमेशा द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखने पर जोर दिया है। सीमा पर विवाद की वजह से भारत-चीन संबंध पर फर्क पड़ा है। हमारे सुरक्षा बलों ने साबित कर दिया है कि वे देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं। हम मानते हैं कि विवाद का निपटारा बातचीत के जरिए ही होना चाहिए। इसलिए चीन के साथ बातचीत जारी है। एलएसी पर चीन की तरफ से घुसपैठ की कोशिश की गई थी। देश की रक्षा के लिए हमारे जवानों ने बलिदान दिया। राजनाथ सिंह ने कहा कि दोनों पक्षों में सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी है।
एलएसी पर तनाव खत्म करने के लिए हुआ बड़ा समझौता
उन्होंने कहा कि चीन ने भारी संख्या में गोला-बारूद इकट्ठा कर लिया था। हमारी सशस्त्र सेनाओं ने भी वहां कार्रवाई की थी। हमारे बहादुर जवानों ने चीन का मुकाबला भी किया था और इसमें हमारे 20 जवानों ने सर्वोच्च बलिदान भी दिया था। वहां की जमीनी सच्चाई से मैं सदन को अवगत कराना चाहता हूं। पाकिस्तान ने भारतीय भूमि का एक बड़ा हिस्सा चीन को दे दिया है। चीन 90 किमी वर्ग भारतीय भूमि को अपना बताता है। 1962 से ही उसका भारत के बड़े भूभाग पर कब्जा है। हम इसे स्वीकार नहीं करते हैं। सीमा पर शांति कायम रखना द्विपक्षीय रिश्तों के लिए आवश्यक है। हम लगातार सितंबर माह से ही चीन के साथ वार्ता कर रहे हैं। इस बीच हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने भी अपने-अपने समकक्षों से इस मुद्दे पर बात की है। हमारी सशस्त्र सेनाओं ने वहां मजबूत स्थिति बनाई है। सेना ने उपयुक्त और सभी क्षेत्रों पर मजबूत स्थिति बनाए हुए है। हमारी सेनाओं ने यह साबित कर दिखाया है कि भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए वह कोई भी कुर्बानी से पीछे नहीं हटेगी। हमने इसके लिए तीन सिद्धांतों पर चीन से बात की है। इनमें एलएसी को मानने और उसका आदर करना शामिल है। इसके साथ ही सीमा का एकतरफा बदलाव नहीं किया जाए तथा सभी समझौतों का पालन लगातार किया जाए। हम चाहते हैं कि दोनों सेनाएं इस स्थान से पीछे हट जाएं। हमारा दृढ संकल्प था कि सितंबर, 2020 से लगातार बातचीत सेना के स्तर पर हो रही है। अभी तक नौ चरणों की वार्ता हो चुकी है। एलएसी पर हम मजबूत स्थिति में है।