जाटलैंड में जयंत

- बीते नवम्बर में भरी हुंकार भाजपा की पेशानी पर बल ला रही
- महापंचायतों की भीड़ बता रही है कि रालोद फिर खड़ा हो रहा
बीते साल के नवम्बर माह में वेस्ट यूपी के जाटलैंड में महापंचायतें कर भाजपाई खेमे में खलबली के हालात पैदा करने वाले रालोद के महासचिव जयंत चौधरी एक बार फिर मैदान में कूद पड़े हैं। अपनी खोई हुई जमीन को पुन: हासिल करने के लिए उन्हें किसान आंदोलन के रूप में बड़ा मुद्दा जो हाथ लग गया है। इसी क्रम में जयंत चौधरी आजकल बृज क्षेत्र के उन इलाकों का दौरा कर रहे हैं जो कभी उनके गढ़ हुआ करते थे। उनकी आज की महापंचायत आगरा के अकोला में होेने जा रही है।
रालोद प्रमुख चौ. अजित सिंह और उपाध्यक्ष जयंत चौधरी (पिता-पुत्र) के लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद रालोद के भविष्य को लेकर चर्चाएं होने लगी थीं। सांसद न रहने के कारण उनसे दिल्ली का वह बंगला भी छिन गया था जहां से चौधरी चरण सिंह देश की राजनीति में अहम भूमिका अदा करते थे। पूरी पार्टी में हताशा के भाव थे। कार्यकर्ता ही नहीं, नेता भी शांत होकर घरों में बैठ गए थे। अचानक एक घटनाक्रम घटा, जिसने रालोद में जान फूंक दी। पिछले महीनों में हाथरस के बूलगढ़ी में दलित युवती से कथित रेप के मामले में जयंत चौधरी पीड़ित परिवार से मिलने हाथरस पहुंचे तो पुलिस ने जयंत समेत उनके समर्थकों पर लाठियां भांज दीं। बस यही घटना रालोद के लिए टर्निंग प्वाइंट बन गई। हाथरस से लौटने के बाद जयंत ने मुजफ्फरनगर के अपने गढ़ में एक महापंचायत बुलाई। इसमें इतनी भीड़ जुटी कि रालोद समर्थक उत्साह से भर उठे। इसके बाद जयंत ने आगरा मंडल के मथुरा में भी ऐसी ही महापंचायत की।
इन महापंचायतों में जयंत ने लोगों से भावनात्मक बातें कीं। नवम्बर महीने में मुजफ्फरनगर की महापंचायत में जयंत चौधरी ने यह कहकर लोगों को झकझोरा- ‘अब लौट भी आओ। मैं आपका खून हूं। ये खून आपको पुकार रहा है। अपने घर लौट आओ।’ मथुरा की रैली में जयंत चौधरी ने भावुक होकर कहा- ‘आप सहयोग करेंगे तभी हम आगे बढ़ेंगे। आप सहयोग नहीं करना चाहते हैं तो मना कर दो, हम यहीं से दिल्ली वापस लौट जाएंगे।’ इन दो सफल महापंचायतों के बाद जयंत चौधरी आगे की प्लानिंग में थे कि उन्हें एक और मुद्दा मिल गया। कृषि कानूनों को लेकर किसानों ने दिल्ली पर चढ़ाई की तो रालोद ने इसमें कूदने में देर नहीं की। भाजपा सरकार के खिलाफ ताल ठोक रहे किसानों की सहानुभूति हासिल कर भाजपा से हिसाब बराबर करने का इससे अच्छा मौका रालोद को नहीं मिल सकता था। भाजपा ही है, जिसने वेस्ट यूपी से रालोद की जड़ें उखाड़ी हैं। दूसरे दौर में जयंत चौधरी की महापंचायतें किसानों के आंदोलन पर ही केन्द्रित हैं।
खबरें हैं कि किसान नेता राकेश टिकैत और जयंत चौधरी ने भी हाथ मिला लिए हैं। जयंत पांच फरवरी को भैंसवाल (शामली), सात फरवरी को अमरोहा, नौ फरवरी को गोंडा (अलीगढ़), 10 फरवरी को खुर्जा (बुलंदशहर), 12 फरवरी को बल्देव (मथुरा) में महापंचायत करने के बाद आज (13 फरवरी) को आगरा के अकोला में किसान महापंचायत करने जा रहे हैं। आगरा की महापंचायत के बाद 14 फरवरी को भरतपुर, 15 को सादाबाद, 16 को शेरगढ़ (मथुरा), 17 को छाता (मथुरा) और 18 फरवरी को गोवर्धन (मथुरा) में उनकी महापंचायत होनी है। इन महापंचायतों में भी जयंत चौधरी भावनात्मक कार्ड के साथ भाजपा के प्रति आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं। जयंत चौधरी शायद समझ चुके हैं कि अपने खोए जनाधार को पाने के लिए लोगों से भावनात्मक तौर पर जुड़ना होगा। वेस्ट यूपी की उस जाट वोट बैंक पर उनकी नजर है जिस पर पिछले कुछ वर्षों से भाजपा का रंग चढ़ा हुआ है। नवम्बर में दो महापंचायतों के जरिए जयंत चौधरी ने मेरठ और आगरा मंडल के अपने परम्परागत जाट वोट बैंक में फिर से पैठ बनाने की कोशिश की तो वे अब किसान आंदोलन के साथ खड़े होकर समूची वेस्ट यूपी के अलावा सीमावर्ती राजस्थान पर भी फोकस कर रहे हैं।
बीते नवम्बर माह में दो महापंचायतों में जुटी भीड़ के अलावा वर्तमान में पंचायतों में जिस तरह से भारी भीड़ जुट रही है, उससे यह कहा जा सकता है कि आगाज बहुत अच्छा हुआ है, लेकिन अंजाम भविष्य के गर्त में ही है। इतना तो तय है कि जयंत चौधरी इसी तरह आगे बढ़ते रहे तो निश्चित रूप से भाजपा की पेशानी पर बल पड़ेंगे। समूचे यूपी तो नहीं, वेस्ट यूपी में जरूर रालोद द्वारा सपा के साथ मिलकर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी जाएंगी।