अब तो डॉक्टर की मौत की वजह रहस्य ही बन जाएगी

कोरोना वैक्सीन लगवाने के सात दिन बाद शहर के एक वरिष्ठ चिकित्सक की मौत हो गई। अब यह विवाद खड़ा हो गया है कि मौत की वजह वैक्सीन या फिर कुछ और। डॉक्टर के परिजन वैक्सीन से मौत बता रहे हैं तो स्वास्थ्य विभाग इससे इंकार कर रहा है। सवाल ये है कि अब यह कैसे तय होगा कि मौत की वजह क्या रही? क्यों नहीं मृत चिकित्सक के शव का पोस्टमार्टम कराया गया?
डॉक्टर बेटे ने स्वास्थ्य विभाग पर मामले को गंभीरता से न लेने के आरोप लगाए हैं, जबकि स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि वैक्सीन का कोई साइड इफेक्ट नहीं है। परिवारीजन वैक्सीन लगवाने के दो दिन बाद वरिष्ठ चिकित्सक की तबियत बिगड़ने और इसकी सूचना स्वास्थ्य विभाग में करने की बात कह रहे हैं, जबकि स्वास्थ्य विभाग का कहना है किसी तरह की कोई सूचना विभाग को नहीं दी गई है बल्कि वरिष्ठ चिकित्सक की मौत होने के बाद परिवारीजनों ने संपर्क साधा है।
वैक्सीन का कोई साइड इफेक्ट नहीं है यह तब पता लग सकता था, जब जिम्मेदार अधिकारियों ने पता करने की कोशिश की होती। मैं लगातार संपर्क कर रहा था, लेकिन कोई संज्ञान नहीं लिया गया। न तो कोई डॉक्टर देखने आया न ही कोई टीम भेजी गई। सवाल ये है कि अगर यह वैक्सीन की वजह से नहीं हुआ है तब भी इसकी जांच कराई जानी चाहिए थी।
डॉ. पुनीत नथानी
दिल्ली गेट निवासी डॉ. पुनीत नथानी निजी अस्पताल संचालक हैं। उन्होंने बताया कि उनके पिता डॉ. किशन नथानी 77 वर्ष के थे और उनका डायबिटीज और पार्किसंस का इलाज चल रहा था। पिता को 28 जनवरी को शहरी स्वास्थ्य केंद्र लोहामंडी भवन पर कोरोना वैक्सीन लगवाई थी। इसके बाद से ही उन्हें भूख लगना बंद हो गई। 30 जनवरी को तबियत बिगड़ने पर उन्हें टेंपरेरी पेसमेकर लगाया गया। कोई सुधार न होने पर गाजियाबाद के मैक्स हॉस्पिटल रैफर किया गया। वहां जांच में पता लगा कि वे रीनल फेल्योर में चले गए हैं। फिर कोमा में चले गए। एक जनवरी को इसकी सूचना टोल फ्री नंबर 1075 पर दी। उन्होंने वैक्सीनेटर से संपर्क करने को कहा तो वैक्सीनेटर से भी संपर्क किया।
वैक्सीनेटर ने अपने सीनियर से बात कराने की बात कही, लेकिन किसी का फोन नहीं आया। दो जनवरी को सीनियर पैरामेडिकल स्टॉफ का फोन आया तो उन्होंने जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. एसके वर्मन का नंबर दिया। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी को सूचना दी। किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
इस बीच एईएफआई, सीडीएसको डॉट इन, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, सीरम इंस्टीट्यूट और एस्ट्रेजेनेका को ईमेल किए। सिर्फ एस्ट्रेजेनेका से ही अब तक एक रिवर्ट मेल प्राप्त हुआ है, जिसमें उन्होंने एईएफआई का एक फॉर्म भेजकर उसे भरने को कहा है। चार फरवरी को मौत होने के बाद पोस्टमार्टम भी नहीं कराया।अगर वैक्सीन का कोई साइड इफेक्ट होता तो तुरंत पता लगता, जबकि डॉ. किशन नथानी वैक्सीन लगवाने के बाद आधे घंटे तक निगरानी में रहे। इसके बाद वे घर चले गए। जैसा कि बताया गया है कि तीन दिन बाद उनकी तबियत बिगड़ी। जबकि स्वास्थ्य विभाग को जानकारी उनकी मौत के बाद दी गई है। डॉ. किशन नथानी को पहले से कई समस्याएं थीं।
डा. एसके वर्मन, जिला प्रतिरक्षण अधिकारी