आरटीआई के गोलमोल जवाब

- जॉन्स मिल संपत्ति विवाद
- जन सूचना अधिकार को हथियार बनाकर प्रशासन को घेरने में जुटे जॉन्स मिल के बाशिंदे
जॉन्स मिल संपत्ति को सरकारी संपत्ति बताकर उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाकर प्रशासन अपने ही जाल में घिरता नजर आ रहा है। एक ओर उससे हाईकोर्ट में जवाब तलब हो रहा है तो दूसरी ओर विवाद के घेरे में आए लोगों ने भी आरटीआई के जरिए घेरना प्रारंभ कर दिया है। हालात ये है कि प्रशासन पर आरटीआई का जवाब देते नहीं बन रहा है। उत्तर आ रहे हैं तो गोलमोल। जॉन्स मिल के बाशिंदों ने जिला प्रशासन के साथ ही अन्य जिलों के प्रशासन से भी आरटीआई के जरिए स्वामित्व साबित करने के लिए आवश्यक कागजातों के बारे में सवाल पूछे थे। इस मामले में आगरा विकास प्राधिकरण ने बैनामों को स्वामित्व का आधार बताया है पर अभी तक अन्य जिलों से आरटीआई के जवाब नहीं आ पाए हैं।
गौरतलब है कि जिलाधिकारी के आदेश पर जुलाई में एडीएम प्रशासन निधि श्रीवास्तव की अध्यक्षता में बनी जांच कमेटी ने जॉन्स मिल की संपत्ति से संबंधित जांच प्रारंभ की थी। समिति ने जांच रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंप दी थी। जांच रिपोर्ट के आधार पर ही जिलाधिकारी ने जॉन्स मिल की संपत्ति को नजलू, सिंचाई, नगर निगम और पुलिस की बताते हुए इनकी खरीद-फरोख्त, नामांतरण पर रोक लगाने के साथ ही बिजली, पानी के नये कनेक्शन न देने के आदेश जारी कर दिए थे। साथ जांच रिपोर्ट के आधार पर ही 139 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उन्हें भूमाफिया घोषित करने की कार्रवाई का मन बना लिया गया था। जिलाधिकारी द्वारा तहसील सदर के अधिकारियों को एफआईआर दर्ज कराने के लिए आदेश दे भी दिए गये थे पर जांच रिपोर्ट पर उंगलियां उठने के बाद मामला लटक गया। इस बीच मामला हाईकोर्ट में पहुंच गया।
हाईकोर्ट में एक नहीं, कई याचिकाएं दाखिल कर दी गई हैं। अभी कुछ नई याचिकाएं पद नाम से नहीं बल्कि अधिकारियों के नामों से दाखिल करने की तैयारी हो चुकी है। इधर हाईकोर्ट भी कड़ा रुख अख्तियार किए हुए है, उसने भी पूछ लिया है कि जिलाधिकारी ने किस अधिकार से प्रतिबंध लगाए हैं।
जिला प्रशासन के लिए अभी इसका जवाब देना ही सिरदर्द बना हुआ है। ऐसे में जॉन्स मिल के बाशिंदों की ओर से दाखिल की गईं आरटीआई अधिकारियों को और अधिक परेशान कर रही हैं। पिछले दिनों जलकल विभाग ने पानी के नये कनेक्शनों पर रोक के मामले में आरटीआई के जरिए पूछे गये सवाल पर यह कहकर पिंड छुड़ाने का प्रयास किया कि मौखिक आदेश पर ऐसा किया गया है पर विभाग की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया कि मौखिक आदेश किसका था?
सूचना को बताया प्रश्नवाचक
समिति के सदस्य कहैन्यालाल अग्रवाल ने तहसील सदर से ही आरटीआई के जरिए सवाल किया कि राजस्व विभाग कलक्ट्रेट व तहसील में कौन-कौन से दस्तावेज रखे जाते हैं। इन दस्तावेजों का मिलान कितने वर्षों के अंतराल पर किया जाता है। इन दस्तावेजों का मिलान किन-किन वर्षों में किया गया है और उसमें क्या त्रुटियां पाई गई हैं? यदि कोई त्रुटि पायी जाती है तो उसे किस प्रकार संशोधित किया जाता है? इसके जवाब में राजस्व निरीक्षक की ओर से जवाब दिया गया है कि सूचना प्रश्नवाचक है, जो सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत नहीं आती है। जैसी सूचना चाही गई है, वैसी सूचना कार्यालय में उपलब्ध नहीं है। इसी में दूसरी आरटीआई दस्तावेजों के मिलान में मिली त्रुटियों के पेज मांगने के लिए डाली गई थी। इसका भी पहली वाली आईटीआई के जवाब तरह जबाव दे दिया गया है। साफ है कि विभागों के पास में जॉन्स मिल संघर्ष समिति के सदस्यों द्वारा पूछे गए सवालों का स्पष्ट जवाब नहीं है।