प्रशासन की नीयत सवालों के घेरे में

- जॉन्स मिल सम्पत्ति विवाद
- आरटीआई के जवाब में जलकल ने बताया कि कनेक्शन पर रोक का आदेश मौखिल मिला?
जॉन्स मिल संपत्ति के मामले में पानी, बिजली के नये कनेक्शनों, बैनामों आदि पर रोक के आदेश की प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराने से आखिर प्रशासन क्यों मुंह चुरा रहा है? आदेशों को छुपाने से प्रशासन की नीयत पर भी सवाल उठने लगे हैं कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया? क्या इसके पीछे प्रशासन की कोई बदनीयती तो नहीं थी। हाईकोर्ट में भी अब सवाल कर रहा है कि आखिर जिलाधिकारी ने किस अधिकार से प्रतिबंध के आदेश जारी किए हैं? इस मामले में 22 फरवरी को जिलाधिकारी को जबाव दाखिल करना है।
गौरतलब है कि जाटनी का बाग में एक गोदाम को खाली कराने के लिए हुए विस्फोट की घटना के बाद जिला प्रशासन व पुलिस जॉन्स मिल की संपत्ति की खोजबीन में जुट गई थी। 29 जुलाई को जिलाधिकारी ने अपर जिलाधिकारी प्रशासन निधि श्रीवास्तव की अध्यक्षता में सात सदस्यीय जांच समिति गठित की थी। इसमें आठवां सदस्य एक शासकीय अधिवक्ता को बनाया गया। करीब पांच महीने तक जांच करने के बाद अपर जिलाधिकारी प्रशासन ने जांच रिपोर्ट 15 दिसंबर 2020 को जिलाधिकारी को सौंप दी। जांच में जॉन्स मिल की संपत्ति को नजूल, पुलिस, नगर निगम और सिंचाई विभाग की बताते हुए इसको खाली कराने की कवायद जिला प्रशासन की ओर से शुरू कर दी गई। जांच के दौरान जिन 145 लोगों ने जमीन से संबंधित अपने कागजात सौंपे थे, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उन्हें भूमाफिया घोषित करने की कार्रवाई की बात अधिकारी करने लगे। इसको लेकर जॉन्स मिल की संपत्ति पर मकान, दुकान और गोदाम बनाए बैठे लोगों में खलबली मच गई। वे दहशत में आ गए। उन्हें अपने जीवन भर की पूंजी पानी में मिलती दिखने लगी। साथ ही समाज में बदनामी का भय अलग से। उनकी रातों की नींद उड़ गई। उन्हें सुबह उठते ही जेल जाने का भय सताने लगा। लोगों में जिला प्रशासन का आतंक बैठ गया। कुछ दिन तो वे अपनी सुधबुध ही खो बैठे। उन्हें बचाव का कोई रास्ता नहीं दिखा।
जिलाधिकारी और एडीएम प्रशासन की ओर से समाचार माध्यमों के जरिए एक के बाद एक कार्रवाई की जानकारी प्रकाशित होती रहीं। घबराए जॉन्स मिल के बाशिंदे मदद के लिए सत्ता पक्ष के विधायकों और सांसदों के दरवाजे पर दस्तक देने पहुंच गए। विपक्षी नेताओं के यहां भी गुहार लगाई पर कहीं से भी उन्हें राहत नहीं मिल सकी। तब उन्होंने आरटीआई को अपनी लड़ाई का माध्यम बनाया। अब आरटीआई के जो जवाब आ रहे हैं, उसने प्रशासन की नीयत पर भी सवाल खड़े करने प्रारंभ कर दिए हैं। जॉन्स मिल संघर्ष समिति के अधिवक्ता रोहित अग्रवाल ने चार जनवरी को जलकल विभाग से आरटीआई के जरिए पूछा था कि जॉन्स मिल क्षेत्र में पानी के नये कनेक्शनों पर किसके आदेश से रोक लगाई गई है? इसके प्रतिउत्तर में 14 जनवरी को जलकल विभाग के अधिशासी अभियंता (जोन-1) ने लिखकर भेजा है कि जॉन्स मिल (जीवनी मंडी) प्रापर्टियों पर जल संयोजन न स्वीकृत करने के मौखिक आदेश हैं। इसकी कोई प्रमाणित प्रति नहीं है।
विभाग ने यह नहीं बताया कि आखिर यह मौखिक आदेश किसका था? इसको लेकर भी अब सवाल उठ रहा है कि आखिर वह कौन है, जिसके मौखिक आदेश पर पूरा विभाग नाचने लगा और उसने जनता के मौलिक अधिकारों को छीनने का प्रयास किया।
जांच रिपोर्ट पर भी गोलमोल जवाब
जॉन्स मिल संघर्ष समिति के सदस्य मनोज अग्रवाल ने आठ जनवरी 2021 को आरटीआई के जरिए जन सूचना अधिकारी नगर मजिस्ट्रेट से जॉन्स मिल मामले में एडीएम प्रशासन की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा की जांच की रिपोर्ट मांगी थी। इस पर 30 जनवरी को एडीएम प्रशासन कार्यालय के सहायक जन सूचना अधिकारी की ओर से जवाब दिया गया कि एडीएम प्रशासन द्वारा जांच आख्या मय संलग्नक 15 दिसंबर 2020 को जिलाधिकारी को मूलरूप से प्रेषित की जा चुकी है, इसलिए इस कार्यालय से कोई भी सूचना दिया जाना अपेक्षित नहीं है। यदि इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हैं तो आप धारा 19 (1) के अधीन इस पत्र प्राप्ति के 30 दिन के अंदर प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष प्रथम अपील दायर कर सकते हैं और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी हैं एडीएम प्रशासन। एडीएम प्रशासन की ही अध्यक्षता में जॉन्स मिल की संपत्ति की जांच की गई थी। ऐसे में सवाल उठना तो लाजिमी है। इसी तरह आरटीआई के जरिए प्रशासन से जवाब मांगा गया कि घटवासन के रजिस्टर में कितने पृष्ठ हैं तो उत्तर आया है कि आवेदनकर्ता कलक्ट्रेट अभिलेखागार में आकर रजिस्टर का अवलोकन कर लें। आज समिति के सदस्य घटवासन के रजिस्टर का अवलोकन करने जा भी रहे हैं। जॉन्स मिल संघर्ष समिति के सदस्यों ने इस तरह से सैकड़ों आरटीआई डालकर प्रशासन से राजस्व से संबंधित सवाल पूछे हैं, जिनके उनके पास गोलमोल जवाब आ रहे हैं। संबंधित विभागों की ओर से स्पष्ट जानकारी नहीं दी जा रही है। आरटीआई के जवाब देखने के बाद प्रशासन की नीयत पर सवाल उठना स्वाभाविक है।