सुधार के बगैर टॉप टेन रैंकिंग दूर की कौड़ी

महापौर नवीन जैन चाहते हैं कि इस वर्ष चल रहे स्वच्छता सर्वेक्षण में आगरा रैंकिंग के लिहाज से टॉप टेन शहरों मेें शुमार हो, लेकिन क्या ये संभव है? नगर निगम के सफाई सिस्टम को देखकर तो कम से कम यही कहा जा सकता है कि यह रैंकिंग हासिल करना दूर की कौड़ी है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय हर साल देश के शहरों में स्वच्छता सर्वेक्षण कराता है। इस सर्वे के कुछ मानक हैं। स्वतंत्र एजेंसी की एक टीम संबंधित शहर में जाकर लोगों से छह सवाल करती है। नागरिकों का जवाब भी रैंकिंग तय करने का आधार होता है।
इसके अलावा टीम विभिन्न क्षेत्रों में जाकर यह देखती है कि नियमित सफाई होती है या नहीं। सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति, डलाबघरों से कूड़ा उठान समेत अन्य तरीकों से सफाई व्यवस्था को टीम द्वारा परखा जाता है। इस प्रक्रिया के बाद संबंधित शहरों के लोगों से वोटिंग के जरिए शहर की सफाई व्यवस्था के बारे में उनकी राय जानी जाती है।
इन दिनों स्वच्थता सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसी के मद्देनजर मेयर ने नगर निगम कर्मचारियों, अधिकारियों और शहरवासियों से आगरा को टॉप टेन रैंकिंग में लाने को मेहनत की अपील की है। सवाल यह है कि क्या आगरा में वाकई सफाई व्यवस्था ढर्रे पर है। यह सवाल तब और महत्वपूर्ण हो गया है जबकि मेयर नवीन जैन खुद कई मौकों पर कह चुके हैं कि सफाई व्यवस्था में पिछले तीन साल के दौरान की गई मेहनत पर अब पानी फिर गया है। वे स्वच्छता सर्वेक्षण में आगरा की रैंकिंग गिरने की आशंका भी जता चुके हैं। महापौर की आशंका सही है क्योंकि महानगर में सफाई व्यवस्था पहले के मुकाबले खराब हुई है। इसे सुधारने के क्रम में ही नगर आयुक्त ने पिछले दिनों नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. विमल कुमार सिंघल को पदमुक्त कर दूसरे अधिकारी को यह काम सौंपा है।

नीयत साफ नहीं अधिकारियों की
सफाई व्यवस्था में सुधार तो तब हो जब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी सही नीयत से काम करें। नगर निगम में सफाई कर्मचारियों की कमी नहीं। स्थायी कर्मचारियों के अलावा ठेके पर भी सफाई कर्मी रखे गए हैं। ठेके के सफाईकर्मियों की हाजिरी में बड़ा खेल हो रहा है। मौके पर आधे कर्मचारी भी काम नहीं करते और हाजिरी सभी की लगाकर पूरा भुगतान नगर निगम से लिया जाता है। इस तरह के झोल रहेंगे तो सफाई व्यवस्था कैसे सुधरेगी।
घपला करने वाली कंपनी पर केस नहीं हुआ
सफाई व्यवस्था में सुधार के लिए आगरा में पिछले सालों के दौरान प्रयास तो बहुतेरे किए गए हैं, लेकिन ढाक के तीन पात समान ही रहे हैं। डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन की व्यवस्था भी सफाई में सुधार के लिए की गई थी। इस काम में जुटाई गई कंपनी फर्जीवाड़ा कर रही थी। कंपनी द्वारा जितने घरों से कूड़ा कलेक्शन करने की रिपोर्ट नगर निगम में दी जाती थी, हकीकत में उससे बहुत कम घरों से कूड़ा कलेक्शन किया जा रहा था। पार्षदों की शिकायतों के बाद इस कंपनी का घोटाला खुला तो यह कंपनी रातोंरात अपना काम समेटकर यहां से भाग गई। उस समय तत्कालीन नगर आयुक्त अरुण प्रकाश ने कहा था कि कंपनी पर कार्रवाई करेंगे। नगर निगम के एक अधिवेशन में विधायक योगेंद्र उपाध्याय और पुरुषोत्तम खंडेलवाल ने भी नगर निगम प्रशासन से पूछा था कि गड़बड़ी करने वाली कंपनी पर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखाई गई है। नगर निगम प्रशासन ने बड़ी सफाई से यह घोटाला दबा दिया। दो अन्य कंपनियां भी इसी तरह के घपले में शामिल मिलने पर उनका करार खत्म किया गया था।
ऊंचे हैं मिनी डंपर
डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन में एक व्यावहारिक दिक्कत ये आती है कि जिन वाहनों (मिनी डंपर) को घरों से कूड़ा उठाने के लिए भेजा जाता है, वे इतने ऊंचे हैं कि सफाईकर्मी सड़क पर खड़े होकर डस्टबिन का कूड़ा डंपर में नहीं उलट पाते। इस समस्या के कारण एक कर्मचारी डंपर पर बैठता है और दूसरा कर्मचारी ऊपर बैठे कर्मी को नीचे से कूड़े का डस्टबिन पहुंचाता है।