जब दर्द होता है तो अपनी मातृ भाषा में ही आवाज निकलती है- कुलपति

जब हमें दर्द होता है तो हमारी आवाज अपनी मातृ भाषा में ही निकलती है। जितना कंफर्टेबल हम अपनी मातृ भाषा में हो सकते हैं उतना किसी और में नहीं। हम ज्ञान के लिए किसी भी भाषा का प्रयोग करें लेकिन जब अपनों के बीच हों तो मातृ भाषा का ही प्रयोग करें। पेड़ अगर जड़ छोड दे तो उसका वजूद खत्म हो जाता है, ठीक उसी प्रकार इंसान अगर अपनी संस्कृति को भुला दे तो उसका वजूद खत्म हो जाता है। इसलिए इंसान को अपनी संस्कृति से जुड़ा रहना चाहिए। ये उद्गार हैं डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक कुमार मित्तल के। वह विवि के पालीवाल पार्क परिसर स्थित कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
मुख्य अतिथि सेंट जॉन्स कॉलेज के हिंदी विभाग के सेवानिवृत्त अध्यक्ष डॉ. श्री भगवान शर्मा ने कहा कि जो समाज अपनी मातृभाषा को भूल जाता है, उसकी संस्कृति नष्ट हो जाती है। अपना वक्तव्य ब्रजभाषा में प्रस्तुत कर उन्होंने सभी का मन मोह लिया। मुख्य वक्ता प्रोफेसर कमलेश नागर ने कहा कि केवल मातृभाषा दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा हमें यह प्रयास करना होगा कि हमारी मातृभाषा को उचित सम्मान मिले। इसके लिए हमें निरंतर अपनी मातृभाषा का प्रयोग करना होगा। उन्होंने उपस्थित सभी विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वह संकल्प लें कि सदैव अपनी मातृभाषा के संरक्षण और उसके प्रचार-प्रसार के लिए तत्पर रहेंगे।
केएम संस्थान में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर गोष्ठी आयोजित
संस्थान के निदेशक प्रोफेसर प्रदीप श्रीधर ने कहा कि 21 फरवरी 1952 को ढाका विश्वविद्यालय, ढाका चिकित्सा महाविद्यालय और जगन्नाथ विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा बांग्ला भाषा को राष्ट्रभाषा घोषित करने के लिए एक आंदोलन किया गया था। जिसका बर्बरतापूर्ण दमन करते हुए पुलिस द्वारा अनेक छात्रों को गोलियों से भून दिया गया था। इस घटना के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए और इसके महत्व को रेखांकित करते हुए यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 को 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की थी। जिसे बाद में सन 2008 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी मान्यता प्रदान की थी। तब से लेकर आज तक हम 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा के रूप में मनाते हैं।
संगोष्ठी का संचालन डॉक्टर केशव कुमार शर्मा ने किया और धन्यवाद ज्ञापन अधिष्ठाता कला संकाय प्रोफेसर उमेश चंद्र शर्मा ने किया। संगोष्ठी में प्रमुख रूप से प्रोफेसर अनिल वर्मा, प्रोफेसर हरिवंश सोलंकी, डॉक्टर निशांत चौहान, डॉक्टर रंजीत भारती, डॉ अमित कुमार सिंह, डॉ. प्रदीप कुमार ,डॉ. आदित्य प्रकाश, अनिल मित्तल, डॉक्टर कमलकांत गोयल, पीएचडी शोधार्थी चारु अग्रवाल, भावना यादव, हेमलता, शिल्पी, सुखवेंद्र, शिवानी ,अनूप, कंचन, सरिता, अनुज, अनिल आदि मौजूद रहे।
